बाहर
शून्य पर है पारा...
मैं सिगड़ी जलाए
उस ताप से
सीने की बर्फ पिघलाना
चाहता हूं
जो
तीस बरसों से
एक अरमान के साथ
दफ़न हो गई है
जम गई है
बाहर
शून्य पर है पारा...
और मैं सोचता हूं
सिर्फ एक चेहरा
उस वक्त साथ होता
जब
निगाहें ढूंढती थी उसे
तो इस जमी बर्फ की जगह
ख्वाहिशों का आईना होता
और आज
ताप के साथ कोई मीठी याद
बाहर
शून्य पर है पारा...
सर्द सुबह
मुंह अंधेरे
जैकेट के उपर
कुहासे की चादर तान
पगडंड़ियों पर चल पड़ा
बेपरवाह
तभी उसने धीरे से
उतारकर अपनी शाल
रख दी मेरे कांधे पे
मुझे जाते देख
एक उदास मुस्कान के साथ
अब भी
शून्य पर है पारा.....
और मैं मंजिल के करीब
सुरक्षित
.., बेतरह ठंड में भी
सोचता हूं..
वो ख्वाब जो जमी है सीने में बर्फ बनकर
गर तीस बरस पहले
पिघल गई होती
तो उसकी दुआओं की भी
वही तासीर होती
जो उदास आंखों से
मुझे विदा करती...अकेली खड़ी
मेरी जीवनसाथी की दुआओं में है
जिसकी बदौलत
जिंदा हूं आज
बाहर
शून्य पर है पारा....
मगर
आश्चर्यजनक रूप से
भीतर जमी बर्फ पिघल चुकी है
मैं उसके प्यार की गर्मी से
रोमांचित हूं
सोचता हूं
तब भी वही होती मेरे साथ
जो आज..मेरे घर में है।
4 comments:
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति...
सादर -
शक्ति बड़ी है सोच में, गर्म गर्म एहसास |
बर्फ पिघलनी चाहिए, किन्तु करे नहिं नाश |
किन्तु करे नहिं नाश, कहीं कुछ छोटे इग्लू |
बर्फ देख मासूम, सोचती रह रह पिघलूं |
पर इग्लू को देख, सोच में आज पड़ी है |
मिला अभी सन्देश, नारि में शक्ति बड़ी है ||
बहुत सुंदर उम्दा प्रभावशाली प्रस्तुति,,,
recent post: मातृभूमि,
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
मुस्कुराहट पर ...ऐसी खुशी नहीं चाहता
Post a Comment