Monday, January 28, 2013

उसने कहा था....


बहुत गुस्‍ताख़ हो जाती है
वो रात
जो तेरे इशारे पर नहीं चलती

चांद के बहाने से
खामोश रात की तरफ
एक चुंबन उछाल दि‍या उसने
यूं लगा अमावस में भी
धनक फैल गई

अब समेट लो हसरतें सारी
एक मुहंबंद खूबसूरत सी थैली में
याराना है रात से
कल फि‍र बि‍छेगी बि‍सात
प्रेम का खेला..शह और मात

दरअसल उसने कहा था
दि‍न शुभ हो...शामें अच्‍छी
कोरी रही रात ने की मुझसे
बेइंतहा शि‍कायतें
मेरी हथेली में कैद है उसका चुंबन
और
दि‍न-रात से परदेदारी है मेरी......

तस्‍वीर--साभार गूगल

5 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

मेरी हथेली में कैद है उसका चुंबन
और दि‍न-रात से परदेदारी है मेरी.,,,,

वाह बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,,,,

recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

अति सुन्दर ,भावपूर्ण रचना ...

रविकर said...

सुन्दर प्रस्तुति |
शुभकामनायें आदरेया ||

Pallavi saxena said...

वाह क्या बात है अंतिम पंक्तियों ने समा बांध दिया बहुत खूब....

शिवनाथ कुमार said...

चांद के बहाने से
खामोश रात की तरफ
एक चुंबन उछाल दि‍या उसने
यूं लगा अमावस में भी
धनक फैल गई

बहुत खूब
सुन्दर रचना !