Wednesday, January 23, 2013

आकाश के माथे का झूमर.....



यादों का ज़मज़म:
मुसलसल गहराता है
पोशि‍दा चांद भी जब
आकाश के माथे का
झूमर बन आता है....

जानते तो हो
कि सुबह से छाई उदासी को
परे सरकाने के लि‍ए
चाहि‍ए होता है
एकमुश्‍त ताजी हवा का झोंका
या
मेंह से सीली धरती से उठती
सोंधी-सोंधी खुश्‍बू

दादी मां ने कहा था एक दि‍न
कि जब
लगातार हो रही हो तलवे में गुदगुदाहट
समझ लेना
कोई बेतरह याद कर रहा है तुम्‍हें
आज मान ही लेती हूं यह बात
कि
कोई मुझे भी याद करता है
तलवे में जाने कब से सुगबुगाहट हो रही है

खुश रहने को ये ख्‍याल......बुरा तो नहीं...



तस्‍वीर----साभार गूगल

4 comments:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट की चर्चा 24- 01- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें ।

रविकर said...

बढ़िया प्रस्तुति |

शुभकामनायें आदरेया ||

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बढ़िया, गढ़वाली भाषा में पैरों तले की इस गुदगुदाहट को " पराज" करते है।

Pratibha Verma said...

वाह क्या बात है ...बहुत सुन्दर