Tuesday, December 18, 2012
इंसान या जानवर....
1. छेड़ा उसने
बहुत डरी, घबरायी
फिर भी जुटाकर हिम्मत
किया विरोध
पर रोज-रोज
यही आलम
सह न सकी बेचारी
उस बदतमीज की हरकत
जिसे लोग कहते हैं ''इंसान''
और हिम्मत हार बैठी मनिता
क्या करती.....कर ली आत्महत्या
2. स्कूल जाती
एक मासूम बच्ची
सरे राह रोज छेड़ते
गली के शोहदे
वो बेबस..घरवाले बेबस
लड़के तो जात से दबंग
न दिखा कोई राह
सह न सकी रोज-रोज की उनकी छेड़छाड़
जिसे लोग कहते हैं ''इंसान''
और हिम्मत हार बैठी मासूम
छोड़ दिया जाना स्कूल
3. देश की राजधानी
हमारी शान
बेहद पाश इलाका
न बच्ची थी वो
न नासमझ आदिवासी
फिर भी हो जाती है
दरिंदो की हवस का शिकार
झुंड में भेड़ियों की तरह
एक साथ पांच-पांच
वो मर्द थे कि हिंसक जानवर
जिसे लोग ''इंसान'' कहते हैं
चंद लोगों की घिनौनी करतूत से
क्या एक औरत कर पाएगी
कभी किसी पर विश्वास ?
कौन देगा इन अनगिनत प्रश्नों के जवाब ?
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8 comments:
मार्मिक ....
एसे लोगों को चोराहे पर बांध कर आम जनता के हवाले कर देना चाहिए। और जनता को चाहिए की वो उन लोगों को कम से कम चार पांच दिन तड़फा तड़फा के बेरहम मौत दे।
बहुत मार्मिक...कौन देगा ज़वाब इन यक्ष प्रश्नों का? या गुम हे जायेंगे ये प्रश्न भी समय के गर्भ में?
क्या एक औरत कर पाएगी
कभी किसी पर विश्वास ?
कौन देगा इन अनगिनत प्रश्नों के जवाब ?
सच्चाई व्यक्त करती उम्दा प्रस्तुति ,,,
recent post: वजूद,
रश्मि जी
इन जानवरों - दरिंदों को इंसान कहने वालों के दिमाग नहीं हो सकता ...
या वह मानसिक विकलांग होगा ...
आपकी रचनाओं में उभरे आक्रोश , गुस्से और चिंता से हम सब सहमत हैं ।
आज हर भारतीय स्वयं को असुरक्षित अनुभव कर रहा है ,
क्योंकि ढुलमुल लच्चर शासन व्यवस्था के कारण गुंडे आतंकी अपराधी और भ्रष्टाचारी बेखौफ़ हैं ,
और आम जनता को ही हर कहीं हानि उठानी पड़ रही है ...
अपराधी पकड़ा जाए तो उसे शर्मिंदा होने देने से भी अपराध पर अंकुश की संभावना है ...
लेकिन बहुत आश्चर्य की बात है कि
पुलिस थानों में अपराधियों को मुंह ढकने में मदद देने के लिए विशेष रूप से थैले सिलवा कर पहले ही से तैयार रखे जाते हैं
अफसोस , पीड़ित की मदद के लिए कोई पूर्व तैयारी नहीं होती !
इस देश की व्यवस्था में परिवर्तन की सख़्त आवश्यकता है ...
मन को उद्वेलित करती रचनाएं !
... लेकिन काश , यह विषय रचनाओं के लिए मिलता ही नहीं । ... हमारी बहन-बेटियों की सुरक्षा पर कभी आंच ही न आई होती ।
शुभकामनाओं सहित…
आधुनिक समाज की इस दशा का चित्रण वाकई पीड़ादाई है.
दूध का जला इसीलिए छाछ फूंककर पीता है...
बहुत दर्दनाक हादसा...
बेह्तरीन अभिव्यक्ति
आधुनिक समाज की इस दशा का चित्रण वाकई पीड़ादाई है. दर्दनाक हादसा.
Insaniyat ke naam pe kalank in logo ko aisi punishment milni chahiye ki phir kabhi aisa kuch karne ko log sapne me bhi soche bhi nahin .
Dusro ke dard ko mahsoos kar use kavitao main utarna ..... kabile tarif . Badhai .. best comliment for shreshta kavya srijan hetu.
Thanks
Rajesh Soni " Raj"
Www.rajeshsoniraj.blogspot.com
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