Monday, December 17, 2012

तनि‍क सी उदासी

हवा में तनि‍क सी खुनकी
घुली हुई है
चांदनी में तनि‍क सी उदासी
मि‍ली हुई है
करते फरि‍याद हम भी
रो-रोकर उनसे
मगर क्‍या करें जुबां ही
सि‍ली हुई है.....

4 comments:

Anonymous said...

सुन्दर लेखन !!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,,

recent post: वजूद,

Alpana Verma said...

bahut khubsurat!

sangita said...

sundar rachna