Thursday, December 20, 2012

2 . अश़आर....

1. अच्‍छे सौदागर हो, चीज कमाल बेचते हो
मुफ़लि‍सी से घबराकर ईमान बेचते हो.....

2.हैरान हूं कि‍ तुझसे मुलाकात हुए एक जमाना गुजर गया, मगर
जि‍स्‍म से आती है अब भी तेरी खूश्‍बू...कैसे तू मुझमें इतना बस गया..

3.तू खुश रहे, शाद रहे......सपनों की हसीं दुनि‍या आबाद रहे
मांगते हैं दुआ तेरे खाति‍र बहारों की...घर अपना भले बरबाद रहे








4.हर शै से पूछा उसका पता, सबने कहा मालूम नहीं
जाने कौन सी रहगुज़र ने, कदमों के नि‍शां को संभाला होगा...

5.इस सि‍(म्‍त जाउं या उस सि‍(म्‍त...ये तय नहीं होता
सब होता है कभी-कभी एक छोटा सा फैसला नहीं होता

6.ढल गई शाम...अब तो देहरी पर इक चि‍राग कर दो रौशन
जुगनूओं के सहारे कब तलक कोई तेरा दर तलाशता रहेगा....

7 comments:

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अच्‍छे सौदागर हो, चीज कमाल बेचते हो
मुफ़लि‍सी से घबराकर ईमान बेचते हो.....
..वाह!

Anonymous said...

बढ़िया, साधुवाद !!

अरुन अनन्त said...

रश्मि जी सभी के सची अशआर माशाल्लाह लाजवाब हैं ढेरों दाद कुबुलें.

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

अच्छा लिखा है आपने। जिंदगी की सच्चाई को रूबरू कराती हैं आपकी पंक्तियां।

शारदा अरोरा said...

khoobsoorat ashaar saje hain...

Madan Mohan Saxena said...

वाह .
अच्‍छे सौदागर हो, चीज कमाल बेचते हो
मुफ़लि‍सी से घबराकर ईमान बेचते हो.....
वाह बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार .

Pallavi saxena said...

वाह दिल छू गई पाँचवी 5 वी पंक्तियाँ...बहुत खूब वाकई कभी कभी सब होता है मगर एक फैसला नहीं होता ....