बहते हैं एक आंख से खुशी के आंसू
दूजे से गम के
समेटू लूं इन्हें अपने आंचल में
या यूं ही सूख जाने दूं......
हल्दी, कुमकुम, आलता, टीका
वरण किया जब तेरा....तो खुश-खुश पहना
जब किया मौत का दूजा वरण
सुहागन हूं, क्यों न लोगों को मुझे सजाने दूं....
रोज इन हाथों से सींचा
आंगन की बेला और रातरानी को
छोड़ जा रही हूं अब ये सदा के लिए
ठहरो...कुछ पल यहां खुद को सुस्ताने दूं....
बरसों किया जतन जिस तन का
मिट़टी में मिल मिट़टी बन जाना है
तोड़ दो मोह-माया के बंधन,आंखें बंद हो इसके पहले
खुद ही ये बात खुद को ही समझाने दूं....
चला-चली की बेला में....मत रोओ
हंसते-हंसते मुझको विदा करो
जाकर उस जहां से कोई नहीं लौटता
ऐसे में क्यों तुम्हें अपने पीछे आने दूं.....
7 comments:
nice presentation
हल्दी, कुमकुम, आलता, टीका
वरण किया जब तेरा....तो खुश-खुश पहना
जब किया मौत का दूजा वरण
सुहागन हूं, क्यों न लोगों को मुझे सजाने दूं....
bahut hi bhavnatmak rashmi ji badhai itne bhavon ko bharne ke liye .आत्महत्या -परिजनों की हत्या
चला-चली की बेला में....मत रोओ
हंसते-हंसते मुझको विदा करो
जाकर उस जहां से कोई नहीं लौटता
ऐसे में क्यों तुम्हें अपने पीछे आने दूं.....बेहतरीन रचना,,
resent post : तड़प,,,
खुशहाल रहा जिनका जीवन
रोते-रोते ही उनको किया
था विदा,पूछते होते गर
था लिया क्या औ दिया क्या!
चला-चली की बेला में....मत रोओ
हंसते-हंसते मुझको विदा करो
जाकर उस जहां से कोई नहीं लौटता
ऐसे में क्यों तुम्हें अपने पीछे आने दूं.....
सुन्दर अभिवयक्ति ... :)
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/11/3.html
चला-चली की बेला में....मत रोओ
हंसते-हंसते मुझको विदा करो
जाकर उस जहां से कोई नहीं लौटता
ऐसे में क्यों तुम्हें अपने पीछे आने दूं.....
सुन्दर अभिवयक्ति ... :)
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/11/3.html
सुन्दर कृति
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