Friday, October 5, 2012

सामर्थ्‍य.....लंबे इंतजार का

एक सि‍रे पर तुम खड़े हो
और
दूसरे सि‍रे पर मैं
हमारे बीच है
बातों का
अभि‍लाषाओं का
और उलाहनों का पहाड़.....
और
हम दोनों शायद
कई जन्‍मों से इसे
सुलझाने में लगे हैं.....
जब तुम
अभि‍लाषाओं की बात करते हो
कामनाओं की अग्‍नि‍(
प्रदीप्‍त करते हो
दूसरे सि‍रे पर खड़ी मैं
उलाहनाओं के अंतहीन धागे से
तुम्‍हें बांधने की कोशि‍श करती हूं....
जब तुम
सारी इच्‍छाओं को परे झटक
स्‍पष्‍टीकरण की सफेद चादर
ओढ़ने लगते हो....
मैं आकाश में उड़ते परिंदों की
कतार देखती हूं......
अब ऐसे में
बताओ
बातों की गठरी से
अपने मतलब की बातें छांटकर
कब हम सीधे उन दो छोरों पर आएंगे
जहां से , जि‍स सिरे से
मैं बात शुरू करूंगी
और तुम करोगे उसका अंत....
क्‍या है तुम्‍हारे अंदर
सामर्थ्‍य.....इतने लंबे इंतजार का .......????

9 comments:

  1. umda prastuti,bakhubi ghar-ghar ki dasta vya krti rachna

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  2. बहुत सुन्दर रचना है .उपालंभ और बातें प्रेम की कैंची हैं .प्रेम तो मूक समर्पण है जहां भाषा चुक जाती है .

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  3. बहुत सुन्दर रचना है .उपालंभ और बातें प्रेम की कैंची हैं .प्रेम तो मूक समर्पण है जहां भाषा चुक जाती है .

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  4. वाह...
    बहुत सुन्दर....

    अनु

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  5. सुन्दर भावपूर्ण रचना

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  6. कब हम सीधे उन दो छोरों पर आएंगे
    जहां से , जि‍स सिरे से
    मैं बात शुरू करूंगी
    और तुम करोगे उसका अंत....
    क्‍या है तुम्‍हारे अंदर
    सामर्थ्‍य.....इतने लंबे इंतजार का .......????...निशब्द हो रहा हूँ ...जड़ चेतन एकाकार हो गए जैसे ...

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