ऐ.....ऐ....ऐ...अहा...आखिरकार पकड़ लिया ..बहुत भागते थे न दूर...कभी तुम मेरे मनमाफिक नहीं रहे्.....कभी मैंने तुम्हारी कद्र नही की......पर अब....खुश हूं...चैन की लंबी सांस भी ली कि अंतत: पकड़ ही लिया.....मगर ये क्या....तुम तो फिर हाथों से फिसल गए....कभी रेत की तरह तो कभी मछली की तरह.......जान गई हूं कि
तुम मेरे हिसाब से नहीं चल सकते.......और फिर मुंह से निकला.................''ये-----जिंदगी''
खूबसूरत जानकारी
ReplyDeletesachhi ye jindagi bhi naa....magar isi pakadne ki koshish me hi to sara sukh hai:)
ReplyDeleteजिंदिगी और समय ये कभी नही रुकते जितना भी हो सके सदुउपयोग करना चाहिए,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST LINK...: खता,,,
वक्त को पकड़ना -संभव कहाँ !
ReplyDeleteबहुत अच्छे.
ReplyDeletekeep it up !!
Kya khub likha
ReplyDeleteWah wah kya khub...
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