(((..बचपन की यादें...)))
कितना कुछ सिमटा होता है यादों के समंदर में......जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं...बचपन की छोटी-छोटी बातें भूलने लगते हैं। दरअसल हम भूलते नहीं......अवचेतन में होती हैं सारी बातें। ये बया का घोसला.....बचपन में मेरे घर के पीछे एक पेड़ पर बया हमेशा घोसला बनाती थी। उसमें से कई अधबने घोसलें वो गिरा देती थी....या गिर जाते थे। पता नहीं मुझे कैसा लगाव था इनसे कि मैं हर रोज जाकर पेड़ पर देखा करती थी कि कितने घोसले बने हैं......कितने नए..कितने पुराने..जितने घोसले गिरते...उन्हें मैं घर में ले आती....अपने कमरे में सजाती और मां की झिड़की भी सुनती थी। बया का घोसला....कुदरत का एक अजूबा.. कहा जाता है कि रोशनी के लिये बया पहले गीली मिट्टी लाती है फिर उस मिट्टी में जुगनू को पकड कर चिपका देती है.....पता नहीं ये बात कितनी सच है मगर बचपन में इस सच का पर्दाफाश करने के लिए शाम ढलने के बाद भी मैं बया के घोसले की तरफ देखा करती थी। मगर पता नहीं कर पाई की सच क्या है.....पर इनकी लगन और घोसलें की बिनावट देख कर आश्चर्य होता है.....बिना हाथ-पैर के एक नन्हीं सी चिड़ियां इतने सुंदर घोसले कैसे बना लेती है ? कुदरत ने कितना हुनर बख्शा है इन्हें..।
ये बचपना होता ही कुछ ऐसा है रश्मि जी, बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeletebaya ki kalakriti lubhati hai man ...
ReplyDeleteकुदरत ने कितना हुनर बख्शा है इन्हें..
ReplyDeletesahi kaha aapne
कुदरत ने तो हम सभी को हुनर से नवाज़ा है ..तभी तो आपके कलम से भी आज हमें बया के बारे में इतना सुन्दर लेख पढने को मिला..
ReplyDeletebaya ka vyaktitv hai uska yah sunder sa ghonsla
ReplyDeleteखूबसूरत।
ReplyDelete