सुन ही लो आज
जिस दिन
पहली बार मिले थे
तुम मुझसे
मुझे तुम पर यकीन नहीं हुआ था
और आज
बरसों बाद भी
रत्ती भर भी नहीं बढ़ा
तुम पे यकीन
मगर
यह भी सच ही है
कि ये दिल
बस तुम्हीं पर आशना है
सिवाय तुम्हारे
कोई नहीं पसंद आता इसे
कुछ तो है
जो औरों से अलग करता है तुम्हें
इसलिए तो
तुम्हें बनाया है चांद
और खुद को धरती
जब जी चाहता है
नजरें उठा
देख लेती हूं तुम्हें
और
सोच लेती हूं कि तुम
मेरे हो
और तुम बेखबर
सबके चांद बने फिरते हो......
मोहक रचना
ReplyDelete---
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सुन्दर कविता |
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteपर अकेले पढ़ने में
मन नहीं लगा
ले जा रही हूँ इसे
नई-पुरानी हलचल में
मिल-बैठ कर पढेंगे सब
आप भी आइये न
इसी बुधवार को
नई-पुरानी हलचल में
सादर
यशोदा
बहुत ही दिलकश रचना |
ReplyDeleteआभार |
भावों से नाजुक शब्द को बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने.........!!!
ReplyDeleteसोच लेती हूं कि तुम
ReplyDeleteमेरे हो
और तुम बेखबर
सबके चांद बने फिरते हो....
बहुत ही उम्दा भाव ,,,,,रश्मी जी,,,,
RECENT POST - मेरे सपनो का भारत
बहुत खुबसूरत कोमल अहसास और सुंदर शब्द संयोजन
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल मंगलवार ११/९/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है
ReplyDeletekhoobasoorat ijhaar-e-muhabbat ,badhayi
ReplyDeleteachchha likha hai
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावों को शब्दों में पिरोया है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अंदाज़ हम धरती तुम चाँद ,बने रहो आकाश सभी के ....बढ़िया प्रस्तुति .
ReplyDeleteमस्त ... अल्हडपन लिए ...
ReplyDeleteअच्छी रचना ....
तुम बेखबर सबके चाँद बने फिरते हो ...
ReplyDeleteभोली सी शिकयत में छिपा है प्रेम !
मीठे भाव !
:):) सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
यकीनन काफी बेहतरीन लिखा है आपने........बेशक
ReplyDelete:)
ReplyDeletedil ko chhu lene wala
ReplyDeleteनजरें उठा
ReplyDeleteदेख लेती हूं तुम्हें
और
सोच लेती हूं कि तुम
मेरे हो
और तुम बेखबर
सबके चांद बने फिरते हो......सुंदर भाव