Monday, September 10, 2012

यकीन....

सुन ही लो आज
जि‍स दि‍न
पहली बार मि‍ले थे
तुम मुझसे
मुझे तुम पर यकीन नहीं हुआ था
और आज
बरसों बाद भी
रत्‍ती भर भी नहीं बढ़ा
तुम पे यकीन

मगर
यह भी सच ही है
कि‍ ये दि‍ल
बस तुम्‍हीं पर आशना है
सि‍वाय तुम्‍हारे
कोई नहीं पसंद आता इसे
कुछ तो है
जो औरों से अलग करता है तुम्‍हें

इसलि‍ए तो
तुम्‍हें बनाया है चांद
और खुद को धरती
जब जी चाहता है
नजरें उठा
देख लेती हूं तुम्‍हें
और
सोच लेती हूं कि तुम
मेरे हो
और तुम बेखबर
सबके चांद बने फि‍रते हो......

20 comments:

  1. सुन्दर रचना
    पर अकेले पढ़ने में
    मन नहीं लगा
    ले जा रही हूँ इसे
    नई-पुरानी हलचल में
    मिल-बैठ कर पढेंगे सब
    आप भी आइये न
    इसी बुधवार को
    नई-पुरानी हलचल में
    सादर
    यशोदा

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  2. बहुत ही दिलकश रचना |
    आभार |

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  3. भावों से नाजुक शब्‍द को बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने.........!!!

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  4. सोच लेती हूं कि तुम
    मेरे हो
    और तुम बेखबर
    सबके चांद बने फि‍रते हो....

    बहुत ही उम्दा भाव ,,,,,रश्मी जी,,,,
    RECENT POST - मेरे सपनो का भारत

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  5. बहुत खुबसूरत कोमल अहसास और सुंदर शब्द संयोजन

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  6. आपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल मंगलवार ११/९/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है

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  7. बहुत सुंदर भावों को शब्दों में पिरोया है.

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  8. बहुत सुन्दर अंदाज़ हम धरती तुम चाँद ,बने रहो आकाश सभी के ....बढ़िया प्रस्तुति .

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  9. मस्त ... अल्हडपन लिए ...
    अच्छी रचना ....

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  10. तुम बेखबर सबके चाँद बने फिरते हो ...
    भोली सी शिकयत में छिपा है प्रेम !
    मीठे भाव !

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  11. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  12. यकीनन काफी बेहतरीन लिखा है आपने........बेशक

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  13. नजरें उठा
    देख लेती हूं तुम्‍हें
    और
    सोच लेती हूं कि तुम
    मेरे हो
    और तुम बेखबर
    सबके चांद बने फि‍रते हो......सुंदर भाव

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