रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं...
Thursday, September 27, 2012
आंसू..
पास आओ तुम कि फिर एक बार
तुम्हें छू कर देखें
मेरे दिल के जख्म
भरते हैं या नहीं........
मेरे आंसुओं को तुम फिर एक बार
समेट लो हथेलियों में
देखना है तुम्हारे आंसू इनमें
मिलते हैं या नहीं........
आंसू आंशुक-जल सरिस, हरे व्यथा तन व्याधि ।
ReplyDeleteसमय समय पर निकलते, आधा करते *आधि ।
*मानसिक व्याधि
गिन के कुछ पंक्तियाँ है पर जो इनमें आपने दर्द भरा है....काबिलेतारीफ |
ReplyDeleteप्रेम और दर्द का अनोखा संगम क्या बात है उम्दा लिखा है आपने
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteदर्द भरी सुंदर रचना,,,,प्रसंसनीय,,,
ReplyDeleteRECENT POST : गीत,
man ki pir pighal kar ban jata hai neer ...
ReplyDeleteलिटमस पेपर टेस्ट प्रेम का कर लेना चाहती है कवियित्री .सुन्दर रचना .
ReplyDeleteबहुत सुंदर!
ReplyDeleteआँसू में आसूँ अगर
मिला दिया जाये
देखिये क्या पता
नमकीन कुछ
मीठा हो जाये !
बहुत ही बढ़िया...
ReplyDeleteवेदना को प्रदर्शित करती सुंदर प्रस्तुति |
ReplyDeleteइस समूहिक ब्लॉग में पधारें और हमसे जुड़ें |
काव्य का संसार
शब्दों का बेहद खूबसूरत इस्तेमाल और कोई फिजूलखर्ची नहीं!! भावों की बेहतरीन अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteवाह वाह बहुत ही सुन्दर।
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