कल के गुजरे मंजर, जो मुझे याद न होते
तो आज इस हाल में हम जिंदा कहां होते...
समंदर में ही फकत उठता चांद रात में ज्वार
गर दिल न होता तो बताओ ये तूफां कहां होते...
कद्र होती नहीं यहां हर एक के अश्कों की
दामन की मानिंद रेत न मिलता तो ये आंसू जज्ब कहां होते.....
वफा मिलती इस जमाने में हमें भी औरों की तरह
तो आज इस कदर हम तन्हां कहां होते....
बहुत सुंदर...
ReplyDeleteRashm ji, bahut..khoob likha hai.
ReplyDeleteMeenakshi Srivastava
meenugj81@gmail.com
वफा मिलती इस जमाने में हमें भी औरों की तरह
ReplyDeleteतो आज इस कदर हम तन्हां कहां होते....
बहुत सुंदर क्या बात हैं
वाह .. सच खा है ... जो वफ़ा रहती जमाने में तो यूं तन्हा न होते .. लाजवाब ..
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
behtrain prastuti.
ReplyDeleteवाह क्या बात है बहुत खूब ...लाजवाब प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteआपने वाकई बहुत अच्छा लिखा है!!!!!!!!
ReplyDelete"कद्र होती नहीं यहां हर एक के अश्कों की
ReplyDeleteदामन की मानिंद रेत न मिलता तो ये आंसू जज्ब कहां होते.."
बहुत खूबसूरत गहन भाव और रचना -लेखनी में जादू है -जीवंत रखें!
कल के गुजरे मंजर, जो मुझे याद न होते
ReplyDeleteतो आज इस हाल में हम जिंदा कहां होते..
लाजवाब...|