Monday, July 16, 2012

प्‍यार और मानसून....

किसी के प्यार में होना
और
मानसून की पहली फुहार में भीगना
एक सा लगता है......
जैसे पता हो किसी के आने का
मगर
एक संश़य होता है
मन में
कौन... कब...
किस वक्त,
मन को भाने वाला
ठीक वैसे ही उतरता है
दिल में
अचानक जैसे आकाश में
काले मेघ घिर आए हों
और सभी इंतजार को
ढाहते हुए
पल भर में ही सराबोर कर जाता है
तन को भी
मन को भी
और आहलादित मन
मयूर सा नाच उठता है
क्योंकि
भीगने के बाद पूरी धरा
खिली खिली सी लगती है
वैसे ही प्यार में सब कुछ
बड़ा भला - भला सा लगता है......।

9 comments:

शिवनाथ कुमार said...

प्यार और मानसूनी फुहार के तालमेल से सजी सुंदर सी रचना ....

neelima garg said...

bahut khubsoorat...

neelima garg said...

bahut khubsoorat...

Sunil Kumar said...

sundar bhavavyakti badhai

प्रेम सरोवर said...

प्यार वह सलोना अहसास है,जो संसार के समस्त रिश्तों से ऊंचा और अनूठा है। यह सुमधुर रिश्ता एक खूबसूरत रहस्य है जिसे आज तक कोई जान नहीं
सका। दो पवित्र और शुद्ध आत्माओं का मिलन है प्यार। एक आकर्षक अनूभूति, जिसे सोचते ही चिंता और तनाव के समस्त तटबंध टूट जाते हैं। सांसारिक जंजीरें खुल जाती है। आपके पोस्ट पर प्रथम बार आया हूं। कविता मन को छू गयी। मेरी कामना है कि आप अहर्निश सृजनरत रहो।
समय मिले तो मेरे नए पोस्ट "अतीत से वर्तमान तक का सफर" पर अपनी उपस्थिति दर्ज करें। धन्यवाद।
Please remove comment moderation.This may please be treated as my suggestion.

Anupama Tripathi said...

भीगी भीगी सी ...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...!!
शुभकामनायें...

सदा said...

अनुपम भाव संयोजित किये हैं इस अभिव्‍यक्ति में आपने ...

कल 18/07/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


'' ख्वाब क्यों ???...कविताओं में जवाब तलाशता एक सवाल''

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर रचना.....

अनु

संगीता पुरी said...

बढिया सफल प्रयोग ..

समग्र गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष