Saturday, June 16, 2012

क्षणि‍काएं........कुछ अलग-अलग सा

,



1.कैसे बताउं कि‍ साथ मेरे क्‍या-क्‍या मुश्‍किलें हैं...
तेरे साथ जीना मुमकि‍न नहीं, तेरे बगैर जीना मुश्‍कि‍ल है.....

2.कुछ उनकी वफा पे था ज्‍यादा गुमां
कुछ अपने मुकद़द़र की थी यही मंजूरी
हम बेनिशां मंजि‍ल की जानि‍ब चलते रहे
कुछ न दि‍या जिंदगी ने
थी उनकी यही रहबरी....

3.बहुत मगरूर हो उठे हैं
हम आपको पाकर
कि‍सी और का नाम भी नहीं लाते
हम अपनी जबां पर.....

4.हममें-तुममे न कोई करार है
और न ही प्‍यार है
फि‍र भी
हर रोज जब
ढलती है शाम
और
सारे पंक्षी
लौटने लगते हैं
अपने बसेरों की ओर
तब न जाने क्‍यों
दि‍ल को लगता है
तुम्‍हारा ही इंतजार है...........

5.खोए-खोए से लगे वो आज
आवाज में थी थोड़़ी उदासी
कि‍स गम ने फि‍र जकड़ा है उनको
जाने कि‍स बात पर छाई है उदासी

7 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

सारे पंक्षी
लौटने लगते हैं
अपने बसेरों की ओर
तब न जाने क्‍यों
दि‍ल को लगता है
तुम्‍हारा ही इंतजार है...........

बहुत बेहतरीन सुंदर क्षणिकाए ,,,,

RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,

Anupama Tripathi said...

सुंदर एह्सास ...कोमल अभिव्यक्ति.

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर रश्मि जी....

बेहतरीन क्षणिकाएं.

अनु

M VERMA said...

वाह .. सुन्दर

M VERMA said...

वाह .. सुन्दर

Dr.NISHA MAHARANA said...

bahut acchi lekhni ki dhar aur srijan ka sansar hai...

डॉ एल के शर्मा said...

बहुत मगरूर हो उठे हैं
हम आपको पाकर
कि‍सी और का नाम भी नहीं लाते
हम अपनी जबां पर.....
प्रखर लेखनी ...