Thursday, April 19, 2012

क्षणि‍काएं


1.सुरमई शाम हो सामने....
या रात में बि‍खरी हो चांदनी
मद्धि‍म हवा के झोकें
याद आपकी दि‍ला ही जाते हैं


2.इस कदर याद आता था वो
कि‍ होकर परेशां हमेशा के लि‍ए दूर कर दि‍या उसे
इस फैसले से पहले कहां मालूम था
कि‍ दूर करके और भी करीब कर दि‍या उसे


3.जानती हूं...तुम अभी पास नहीं हो मेरे
फि‍र भी कानों में तुम्‍हारी आवाज गूंजती है
हर पल ये अहसास होता है
कि‍ दूर कि‍सी कोने से तुमने पुकारा मुझे...



4 कोई यूं ही साथ चला करता था
हमें भरम हुआ कि‍ हम उनका संसार बन बैठे हैं
घड़ी दो घड़ी जो बात कर ली मुलायमि‍यत से उन्‍होंने
हमें भरम हुआ कि‍ हम उनका प्‍यार बन बैठे हैं


5.हमें लगता था...
खुश्‍बू लि‍ए हवा का झोंका
मुझसे मि‍लने
सिर्फ मेरी खाति‍र आया है
जब गौर कि‍या तो पाया हमने...
उसने तो मेरे साथ-साथ
कई और जुल्‍फों को बि‍खराया है....

11 comments:

  1. जिसको दूर करो वो उतना ही करीब चला आता है ... सभी लाजवाब ...

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  2. कोई यूं ही साथ चला करता था
    हमें भरम हुआ कि‍ हम उनका संसार बन बैठे हैं
    घड़ी दो घड़ी जो बात कर ली मुलायमि‍यत से उन्‍होंने
    हमें भरम हुआ कि‍ हम उनका प्‍यार बन बैठे हैं

    बहुत ही अच्छी क्षणिकाए लगी,...रश्मी जी...

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  3. वाह............

    बहुत सुंदर क्षणिकाएँ...

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  4. खुबसूरत क्षणिकाएं...



    कुँवर जी,

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  5. बेहतरीन क्षणिकाएँ!


    सादर

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपका श्रम सराहनीय है!

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  7. बहुत ही अच्छी खुबसूरत खुबसूरत...रश्मी जी

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  8. प्रेम पगी सुंदर क्षणिकाएं

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  9. वाह वाह …………बहुत सुंदर क्षणिकाएँ।

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  10. जानती हूं...तुम अभी पास नहीं हो मेरे
    फि‍र भी कानों में तुम्‍हारी आवाज गूंजती है
    हर पल ये अहसास होता है
    कि‍ दूर कि‍सी कोने से तुमने पुकारा मुझे...
    वाह वाह ...

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