रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं...
Wednesday, April 11, 2012
"खड़े हैं कब से हम भी
अहले-वफा की कतार में
जफा़ के फूल जरा
हमें भी बांट दीजिए...
फैला हुआ दामन
अब हो चुका है चाक-चाक
दिल को भी अब जरा
टुकड़ों में बांट दीजिए''
वाह!!!!!!!!
ReplyDeleteक्या कहने!!!
अनु
दिल को भी अब जरा
ReplyDeleteटुकड़ों में बांट दीजिए''
शानदार पंक्तिया
आनन्द की सीमा नहीं
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअब हो चुका है चाक-चाक
ReplyDeleteदिल को भी अब जरा
टुकड़ों में बांट दीजिए''
himmat naa haariye
thodaa saa sabr rakhiye
dil ko naa todiye
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत खूब
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