Wednesday, April 11, 2012

"खड़े हैं कब से हम भी
अहले-वफा की कतार में
जफा़ के फूल जरा
हमें भी बांट दीजि‍ए...
फैला हुआ दामन
अब हो चुका है चाक-चाक
दि‍ल को भी अब जरा
टुकड़ों में बांट दीजि‍ए''

6 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह!!!!!!!!
क्या कहने!!!

अनु

yashoda Agrawal said...

दि‍ल को भी अब जरा
टुकड़ों में बांट दीजि‍ए''
शानदार पंक्तिया
आनन्द की सीमा नहीं

Sunil Kumar said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

Nirantar said...

अब हो चुका है चाक-चाक
दि‍ल को भी अब जरा
टुकड़ों में बांट दीजि‍ए''
himmat naa haariye
thodaa saa sabr rakhiye
dil ko naa todiye

M VERMA said...

बहुत खूब

M VERMA said...

बहुत खूब