किसी भी रिश्ते के विसर्जन से पहले
एक बार
उस रिश्ते से मिली हर खुशी
हर दर्द
को सहला लेना चाहिए
जो उस रिश्ते से
हमें मिले थे कभी.......
वह खुशी
जो अब कपूर हो गई
और वो दर्द...जो
पकता-टीसता और
कसकता रहता है हर वक्त
क्या मालूम
कल को जीने का वही
एकमात्र संबल रह जाए
पर तब हम
फिर से एक नई शुरूआत के लिए
तरस कर रह जाए..
क्योंकि कई बार
आज का कड़वा सत्य
कल आधारहीन हो जाता है
इसलिए
कुछ भी तोड़ने और छोड़ने
से पहले, एक बार
फिर से सब कुछ जी लेना चाहिए.......
15 comments:
bahut sahi nd satik bat rashmi jee
bahut acchi prastuti....
सुंदर अतिसुन्दर सारगर्भित रचना , बधाई
वाह रश्मि जी....................
किसी भी रिश्ते के विसर्जन से पहले
एक बार
उस रिश्ते से मिली हर खुशी
हर दर्द
को सहला लेना चाहिए
जो उस रिश्ते से
हमें मिले थे कभी.......
बहुत बहुत प्यारी बात कह डाली आपने..........
दिल आ गया आपकी रचना पर.
अनु
कुछ भी तोड़ने और छोड़ने
से पहले, एक बार
फिर से सब कुछ जी लेना चाहिए.......
सार्थक सोच
uttam shabd sanyojan
बहुत अच्छी रचना
बेहतरीन!
सादर
बहुत उम्दा रचना...
सुन्दर गहन अभिव्यक्ति. अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आना.
सादर
मधुरेश
कल 09/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
सच है पहले जी के देख लेना चाहिए हर पल को .. बहुत लाजवाब ..
एक सुन्दर विश्लेषण जीवन और उससे जुडी परिस्तिथियोंका .....
रश्मिजी बहुत सुन्दर लगी आपकी सोच .....लेकिन सच तो यह है ...की रिश्ते कभी विसर्जित नहीं होते ...अगर उनसे ख़ुशी मिली है .....तो याद आते ही ... मुस्कराहट बन चेहरे पर उभर आएंगे और दुखदायी रहे हैं ...तो टीस से साल जायेंगे ....लेकिन विसर्जित.....कभी नहीं ...
किसी भी रिश्ते के विसर्जन से पहले
एक बार
उस रिश्ते से मिली हर खुशी
हर दर्द
को सहला लेना चाहिए
..
पूरी तरह से सहमत हूँ आपसे रश्मि जी ! समय की अपनी गति है जिसे पकड़ा नहीं जा सकता मगर जब तक पास है स्पर्श करके जिया तो जा ही सकता है !!
बहुत सुन्दर!
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