क्या मेरा चाहना
इतना सुलभ लगा तुम्हें
कि
प्रेम की कोंपलें खिलाने
के बजाय
कामनाओं के जंगल में
विचरना चाहा तुमने.....
मैंने तो तुम्हें
तुम्हारी हर कमी के साथ
स्वीकारा था
मंत्रबिद्ध सी..
तुम्हारी हंसी पर हंसती
आंसुओं पर गीली होती
लड़खड़ाते कदमों को
संभाल रही थी.....
और कुछ भी तो नहीं चाहा
कुछ भी तो नहीं मांगा था
इसके सिवा
कि
तुम संग
जिंदगी की आड़ी-तिरछी राह पर
तब तक चलूंगी, जब तक
राह सहज-सरल न हो जाए...
जानते थे तुम भी
कि रास्ते और भी कई थे
निरुपाय.....निष्कंटक
मगर मैंने नहीं चुना उन्हें
क्योंकि
वो तुम तक नहीं जाते थे..
मुझे तो शब्दों के जादूगर से
प्यार था.....
और वो जादूगर
फरेबी निकला
उसकी जादूगरी बस
हाथ की सफाई थी...
और मैं
इस अंतहीन सवाल में उलझकर
रह गई, कि..
क्या मेरा चाहना
इतना सुलभ था.....???
11 comments:
BAHUT ACCHA SAWAL.....BAHUT ACCHI PRASTUTI...
सुन्दर अति सुन्दर प्रस्तुति रश्मि जी
अद्भुत शव्दों का प्रयोग, कोमल भाव
........मैंने तो तुम्हें
तुम्हारी हर कमी के साथ
स्वीकारा था
मंत्रबिद्ध सी..
तुम्हारी हंसी पर हंसती
आंसुओं पर गीली होती
लड़खड़ाते कदमों को
संभाल रही थी.....
और कुछ भी तो नहीं चाहा
कुछ भी तो नहीं मांगा था
इसके सिवा
वाह बहुत उम्दा प्रस्तुति!
अब शायद 3-4 दिन किसी भी ब्लॉग पर आना न हो पाये!
उत्तराखण्ड सरकार में दायित्व पाने के लिए भाग दौड़ में लगा हूँ!
तभी तो कहते हैं......प्यार अंधा होता है...
बेहतरीन अभिव्यक्ति रश्मि जी.
सार्थक सृजन, आभार.
कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नयी पोस्ट पर भी पधारें
सार्थक और बेहतरीन अभिव्यक्ति रश्मि जी...बधाई..
सवालों में उलझने के बाद ही तो सवालों के जवाब मिलेंगे.
उफ़ मोहब्बत जो ना करवाये
मन के द्वंद्व को बखूबी लिखा है ...
मनोविज्ञान कहता है कि जो इस बात के आकांक्षी हों कि उन्हें और कुछ नहीं,बस प्यार के दो मीठे बोल चाहिए,उनके कृत्रिम मिठास रखने वाले व्यक्ति के चंगुल में फंसने की संभावना रहती है। इसलिए,जादूगर को फरेबी कहना बेकार है। जादूगर तो स्वयं कहते हैं कि उसका कारनामा हाथ की सफाई भर है। अब यह देखने वाले पर है कि वह उसे सच माने या हाथ की सफाई!
मुझे तो शब्दों के जादूगर से
प्यार था.....
और वो जादूगर
फरेबी निकला
उसकी जादूगरी बस
हाथ की सफाई थी...अति सुंदर
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