Monday, February 6, 2012

हि‍साब

कहता है वो.....
कि मुझसे
कब, क्‍यों और कहां
का हि‍साब
मत कि‍या करो....
मुझे चैन से जीने
दि‍या करो।
और जो मैं कह दूं
कि‍सी रोज
कि‍
मेरे सोने-जागने
हंसने-बति‍याने
यहां तक कि‍
चलती सांसों का भी
जो हिसाब रखते हो...
न रखा करो।
तुमको मि‍ली स्‍वतंत्रता का
दसवां हि‍स्‍सा भी
मुझे जीने दि‍या करो....
उस दि‍न
मेरे सम्‍मान में जो
कसीदे पढ़े जाएंगे
क्‍या आंखों में आंसू भरकर भी
हम कि‍सी को बता पाएंगे ?

13 comments:

संजय भास्‍कर said...

पढ़ रहा हूँ ...समझ रहा हूँ ..
गहन ...मर्मस्पर्शी ...

रश्मि प्रभा... said...

और जो मैं कह दूं
कि‍सी रोज
कि‍
मेरे सोने-जागने
हंसने-बति‍याने
यहां तक कि‍
चलती सांसों का भी
जो हिसाब रखते हो...
न रखा करो।... पता है न , उंगलियाँ तुम पर ही उठेंगी

vandana gupta said...

उफ़ ज़िन्दगी की हकीकत बयाँ कर दी…………बेहतरीन।

अरुण चन्द्र रॉय said...

खूबसूरत कविता.... दिल को छूती हुई सी...

पश्यंती शुक्ला. said...

Vakai behtar

Nirantar said...

har ek kee kismat mein kahnaa kahaan?
sirf sunnaa hee likhaa hotaa

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति!

dr.mahendrag said...

SOCHNE. SAMJHNE KO MAJBOOR KARTA HAI'SANG RAH KAR BHALA KOE HISAB KARTA HAI, DONO HI NA KARE TO ACHHA HAI

केवल राम said...

मार्मिक अभिव्यक्ति ....!

Amit Chandra said...

बेहद उम्दा.

Sunil Kumar said...

बहुत खूबसूरती से अपना दर्द छिपाया लगता हैं

दिगम्बर नासवा said...

मार्मिक अभिव्यक्ति ...

Pallavi saxena said...

बहुत ही मार्मिक भाव अभिव्यक्ति ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है