Saturday, December 31, 2011

फुर्सत के पल


आकाश के
दक्षि‍ण-पश्‍चिम कोने पर
टि‍मटि‍मा रहे
चमकीले तारे ने
पूछा मुझसे......
क्‍या मैं तुम्‍हारे लि‍ए
बस एक फुर्सत का
पल हूं ?
जब दुनि‍या भर के
कामों को
नि‍बटा लेती हो
अपनों को संतुष्‍ट
और परायों को
वि‍दा कर देती हो....
तब
मेरी ओर देखकर
इतनी लंबी सांसे
क्‍यों भरती हो ?
मैं भी चाहता हूं
तुम्‍हें भर आंख देखना
तुमसे कुछ बति‍याना
और तुम्‍हारी
खि‍लखि‍लाहट को सुनना
मगर तुम
तभी आती हो
जब मैं डूबने वाला होता हूं
तुम्‍हारा आना
और मेरा जाना....
क्‍या नि‍यत है हमारा वक्‍त ?
कभी सोचा है तुमने
कि‍ मैं
तुम्‍हारे फुर्सत का पल हूं
या फि‍र
यही एक पल है
जब तुम
तुम्‍हारे साथ होती हो
और मैं
तुम्‍हारे नि‍तांत अपने पल का
एकमात्र साक्षी बनता हूं.....

4 comments:

कविता रावत said...

बहुत बढ़िया उम्दा रचना ..
आपको सपरिवार नववर्ष २०१२ की हार्दिक शुभकामनायें..

Amit Chandra said...

बेहद खूबसूरत एहसास.

नववर्ष की शुभकामनायें.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत सुंदर भावों की बेहतरीन प्रस्तुति,
आपकी पोस्ट पर पहली बार आया आना सार्थक रहा,.
समर्थक बन रहा हूँ,आप भी बने खुशी होगी,..

नई रचना "काव्यान्जलि":

नही सुरक्षित है अस्मत, घरके अंदर हो या बाहर
अब फ़रियाद करे किससे,अपनों को भक्षक पाकर,

ashokjairath's diary said...

दौड दौड नाचा करते हैं
धूल भरे झोंकों में पत्ते
पेड़ों से टूटे वो पत्ते
सूख सूख कर जो बेहद भूरे लगते हैं

धूल भरे झोंकों में वो
नाचा करते हैं
टूट टूट बिखरे बूढ़े बेबस ख्वाबों से
बिखरी बिखरी पथराई सोचों के जैसे
टीस भरी उधडी उधड़ी उमीदों जैसे ...
पत्ते आँखों में दिल में चुभते रहते है ...