Sunday, October 9, 2011

यादों का दि‍या

जो भी मि‍ला
इतना मि‍ला
कि‍ जी लूं....
सहेज लूं
यह सोचकर
कि‍
कल जब
वक्‍त के थपेड़े
अंधेरे कोने में
ला पटके मुझे
तो
इन सहेजी हुर्इ्र
यादों का दि‍या जला
रौशन कर सकूं
जिंदगी का अंधि‍यारा
जी सकूं
उन वादों को ओढ़कर
जो बड़े प्‍यार से
तुमने
कि‍ए थे मुझसे
अंजुरी भर-भर
उड़ेली थी
मीठी बातें....
जो यादों का जुगनू बन
टि‍मटि‍माते रहते हैं
अक्‍सर
जब जिंदगी बड़ी
स्‍याह सी लगती है.......।

8 comments:

  1. यादों को संभाल कर रखे बहुत काम आती है तन्हाई में , सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई

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  2. मनोभाव की सुन्दर प्रस्तुति ..

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  3. मनोभाव की सुन्दर प्रस्तुति ..

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  4. मनोभावों की सुन्दर प्रस्तुति

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  5. किसी की मीठी याद में डूबी सुंदर रचना ।

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  6. बहुत सुन्दर रचना. काश! कोई मुझे भी ऐसा लिखना सिखाता.

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  7. sundar likha hai ...bas man ke bhaav hain ..jidhar le jaayen ...

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  8. सुन्दर अभिव्यक्ति ...

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