रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं...
Sunday, September 25, 2011
हमकदम
जब साथ चलने का इरादा था
खुद से किया एक वादा था....
क्यों थाम लिए अपने कदम
क्यों न बन पाए हमारे हमकदम ??
जो चाहा होता साथ चलना
यूं न हुई होती मैं अकेली
यूं ही मिट गए कदमों के निशान
न आया कोई पीछे बनने मेरा हमकदम।
1 comment:
बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ हैं.....
Post a Comment