Sunday, September 4, 2011

तुम्‍हारी यादें

हर दि
जब ढलती है शाम तो
सफेद बादल का एक टुकड़ा
मेरी छत की मुंडेर पर
आकर झांकता है
तुम्हारी यादों की तरह......
और... लालिमा में लिपटी
पीली शाम
मोगरे के फूलों सी
महकने लगती है
तुम्हारी यादों से.....
और मैं
शाम सुगंध के तानेबाने में
उलझी सी
सोच में गुम हो जाती हूं
पहुंच जाती हूं वहां
जहां सिर्फ तुम हो
और हैं....
तुम्हारी यादें।

2 comments:

कविता रावत said...

yadon ka sunhara sajeev ruphala chitran..
bahut badiya pyarbhari prastuti..

ashokjairath's diary said...

सपनों के दिनों में यादों की भीड़ ... अचरज होता है ... यादों कि डालियों पे रंगबिरंगे फूल खिलाती हो ... एक बात कहें ... तुम्हारे खिलाए फूलों से आवाजें आती हैं ... गुनगुनाहट और गूँज सुनाई देती है ... प्यार और आशीर्वाद ...