बहुत पास.....
महसूस कर सकती हूं
तुम्हारी आंखों को
जो देखती हैं
मेरे चेहरे को
अनवरत
और फिर....तुम्हारा स्पर्श
मेरी उंगलियों से होता हुआ
ह़दय तक पहुंचता है
मेरी उंगलियों से होता हुआ
ह़दय तक पहुंचता है
मैं लीन.....विलीन
जड़वत हो जाती हूं....
तुम्हारी वह
प्यार भरी
तुम्हारी वह
प्यार भरी
सहलाती सी आवाज
साथ रहती है हरवक्त
और कहती है
वादा है
वादा है
साथ देने का हमेशा
मैं हूं न.....हरदम
तुम्हारे....सिर्फ
तुम्हारे लिए.....।
तुम्हारे लिए.....।
2 comments:
सच है ...साथ शायद जीने से ज्यादा महसूस करने का भाव है ......सुंदर रचना
मन को छू जाने वाले भाव।
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लो जी, मैं तो डॉक्टर बन गया..
क्या साहित्यकार आउट ऑफ डेट हो गये हैं ?
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