तुमने कहा था-----
कि साझा ह्रै सब कुछ
बांट लो मुझसे
अपनी पीड़ा और सपने
मैं रखूंगा तुम्हारे
दर्द पर प्यार के फाहे---
और दूंगा
तुम्हारे सपनों को पंख
मगर कहां तुम
अपनी जुबां की लाज रख पाए
मेरे दर्द को और कुरेदा तुमने
उड़ने से पहले ही पंख कतर डाले
ये कैसा साझे का वादा था----
जो तुमने निभाया
और हमने पाया।
...सब्र कर ऐ दिल मेरे तू सब्र कर
ReplyDeleteकुछ अँधेरे और फिर बस रौशनी
पंख तेरे और थोड़े से उगें
ख्वाब में थोड़ी सी बेचैनी बढे
फिर उड़ाने तेरी तुझको ले चलें
उस तरफ जिसकी थीं सब बातें करीं
पर ज़रा सा बस ज़रा सा सब्र कर
लगभग हर जगह यही सब -कुछ होता है ..रह रह जाती है कविताएँ सहारा बनकर !!! "" जुबान की लाज रख पाये ??. वाह !!! चंद शब्दों में विराट वृतांत उजागर करती आपकी आपकी सुन्दर रचना !!!
ReplyDeleteलगभग हर जगह यही सब -कुछ होता है ..रह रह जाती है कविताएँ सहारा बनकर !!! "" जुबान की लाज रख पाये ??. वाह !!! चंद शब्दों में विराट वृतांत उजागर करती आपकी आपकी सुन्दर रचना !!!
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