Monday, May 10, 2010

क्‍या था सच


अहसास बेमानी थे
या शब्‍द
पता नहीं,
कि‍न भावों को पि‍रोकर
शब्‍दों का
मोती बनाया था,
आज पलटती हूं
गुजरा लम्‍हा
तो लगता है
वो शब्‍द, वो खत
जि‍नमें सि‍र्फ
अहसास समाए हैं,
क्‍या वो सच था
या सि‍र्फ
कल्‍पनाएं हैं।

11 comments:

Anonymous said...

अहसासों को कसौटी पर परखती प्रशंसनीय रचना

राजकुमार सोनी said...

लगा जैसे एक ही सांस में पूरी रचना आपने सुना दी। मैं बहुत खूब लिखकर आपकी तारीफ करता हूं। वाकई अच्छी रचना।

दिलीप said...

bahut khoob...

अखिलेश शुक्ल said...

aapki kavitao mai sach hi hai, ek ashia sach jo samaj ke liyai hai.

सूबेदार said...

ek acchha ahsas.
bahut acchhi rachna

मनोज कुमार said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति!

सु-मन (Suman Kapoor) said...

सच में कभी कभी अतीत के पन्ने पलटने पर ये महसूस होता है

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत कोमलता से लिखे हैं एहसास.....सुन्दर अभिव्यक्ति

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

आपके अहसासों ने मन को छू लिया।
हार्दिक शुभकामनाएँ।
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कौन हो सकता है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?

बाल भवन जबलपुर said...

अति उत्तम

संजय पाराशर said...

भूतकाल तो भूत के सामान होता है.... भविष्यकाल कल्पनाओं पर टिका होता है......वर्तमान ही सच होता है ... अब कविता पुनः पढ़कर तय होगा की की वो कल्पना थी या सच......