Wednesday, March 5, 2008

संजीवनी

संजीवनी
तुम्‍हारे शब्‍द
स्‍मृति‍
कंटक राहों की डोर

तुम्‍हारा साथ
सागर का ठहराव
वि‍श्‍वास
अटल चट्टान
और हृदय
पत्‍थरों से नि‍कलकर
बहता हुआ
एक नि‍र्मल
झरना

ये जीवन
बस तुममें ही
समाहि‍त होगा
आदर्श रहोगे तुम
'जिंदगी'
याद करेगी
तुमको
नीले स्‍वच्‍छ
आकाश सा,
तुम पास रहो
या नहीं

4 comments:

  1. rashmi jee,
    bahut sundar rachnaa hai, shabdon kaa chayan aur prayog dil ko bhaa gaye.

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  2. तुम्‍हारा साथ
    सागर का ठहराव
    वि‍श्‍वास
    अटल चट्टान
    और हृदय
    पत्‍थरों से नि‍कलकर
    बहता हुआ
    एक नि‍र्मल
    झरना
    ati sundar

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  3. मन में उठते भावों क्या सुंदर शब्द दिये हैं आपने ...साथ में एक लय होने के कारण कविता ह्रदय को छूती है ...बधाई

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