Sunday, December 12, 2021

दि‍संबर...

 

 

कुछ और लंबी हो जाएगी
यादों की फ़ेहरिस्त
देखते ही देखते गुजर जाएगा यह साल भी

धूप सेंकने के बहाने
छत के किसी कोने में
याद आएगी कुछ सीली बातें, अनकहे फ़साने

आख़िर दिसंबर तक
यह लगेगा कि
फूल आएंगे, वो आएगा या कोई पैग़ाम

एक बार को
जी मचल उठेगा कि
भूल कर हर शिकवा धीमे से फिर आवाज़ दूँ

मगर, सर्द मौसम में
सर्द लहजे की याद
कटार बन चुभेगी, आग बन जलाएगी

हर बरस की तरह
होंगी ठिठुरी हुई रातें
यह दिसम्बर भी पहले की तरह गुजर जाएगा ।

7 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (13-12-2021 ) को 'आया ओमीक्रोन का, चर्चा में अब नाम' (चर्चा अंक 4271) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (13-12-2021 ) को 'आग सेंकता सरजू दादा, दिन में छाया अँधियारा' (चर्चा अंक 4277 )' पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  3. वाह बहुत ही सुंदर!

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  4. सुन्दर रचना शुभ कामनाएं

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  5. हर बरस की तरह
    होंगी ठिठुरी हुई रातें
    यह दिसम्बर भी पहले की तरह गुजर जाएगा... वाह!बहुत सुंदर।
    सादर

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