फिर आई
तेरी याद वाली हिचकी
अक्टूबर की गुलाबी सर्दी में
बरस रहा बादल
सिहर-सिहर रहा तन
छू गई तेरी याद की बूंदे
फिर आने लगी
तेरी याद वाली हिचकी
सुबह की हल्की धुंध में
ओस भीगा गुलाब
खिल उठा और..कुछ और
भार से बूंदों की
झुक गई हरी दूब
नम हवा ने जैसे छुआ हो
किसी के मूंगिया लब
ये देख मुझे
फिर आई
तेरी याद वाली हिचकी
तस्वीर--साभार गूगल
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कौन याद करता है, हिचकियाँ समझती हैं।
ReplyDeleteबहुत खुबसुरत रचना.
ReplyDeleteसादर.
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteभावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने..
ReplyDeletePYARI RACHNA HAI
ReplyDeleteकितना कुछ अपने साथ ले आई ... तेरी याद वाली हिचकी ... प्रेम का एहसास लिए ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
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