यादों की रेज़गारी को
शब्दों के नोट में तब्दील कर
वो रोज ही लिखा करता है
एक ख़त मेरे नाम
ख़त में होती
दुनियादारी की तमाम बातें
दाल-सब्जियों के भाव
काम की थकान
और बोझिल दिन का बयान
पर ताजिंदगी नहीं कह पाया
वो अपने जज्बात मुझसे
बिना नागा लिखे हर ख़त में
मेरे लिए होता है
सिर्फ एक शब्द....'जान'
और मैं समझ जाती,कि
उमड़ते प्यार को वो
जमा करता होगा एक गुल्लक में
मुझे तब देने के लिए,जब
खत्म हो जाएगी यादों की रेज़गारी
तस्वीर...कश्मीर की और नज़र मेरे कैमरे की

बहुत बढिया
ReplyDeleteक्या बात
वाह ... अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने
ReplyDeleteपर ताजिंदगी नहीं कह पाया
ReplyDeleteवो अपने जज्बात मुझसे
बिना नागा लिखे हर ख़त में
मेरे लिए होता है
सिर्फ एक शब्द....'जान'-----
प्रेम और अपनेपन का सुंदर अहसास
आम प्रेम कविताओं से अलग
सुंदर प्रस्तुति
बधाई
एक गीत पढें
जीवन लगे लजीज----
bahut sundar "jan" hi is prastuti ki jan hai behatareen ,sadar
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १६ /४/ १३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
ReplyDeleteवाह वाह !!! बहुत ही अनुपम भाव,,उम्दा प्रस्तुति,आभार
ReplyDeleteRecent Post : अमन के लिए.
हर बात लिखी जा सकती है क्या?
ReplyDeleteयादों की ये रेजगारी भी क्या कभी खत्म होती है ... महाग्रंथ लिखे जाते हैं अंश से ही ...
ReplyDeleteअनकहे जज्बातों को समझने के लिये भी तो बहुत बड़ा दिल और बहुत सारा भरोसा चाहिये जो आपके पास भरपूर है ! नाज़ुक अहसास लिये बहुत प्यारी कविता !
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