तेरा भी शुकराना....
तमाम रिश्ते-नातेबेशकीमती हैं तुम्हारे लिएसिवा एक मेरे* * *फरेब से बारिश केमुरझाते हैं नन्हें तरूपर आ ही जाता है उन्हें भीधरती के सीने सेजीवन शक्ति लेना
* * * *
कि एक ठोकर देती है
आगे संभलकर चलने का
हौसला
* * *
नए सब़क और पहली ठोकर के लिएजिंदगी के साथ तेरा भी शुकराना....
....मेरा भी शुकराना :)
ReplyDeleteजन्नत 2 के गाने के बोल याद आ गये इस रचना को पढकर
ReplyDeleteरूपकात्मक तत्वों से संसिक्त सशक्त रचना .प्रतीक अभिनव लिए हैं .सुन्दर मनोहर .
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ReplyDeleteदिनांक 07/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
खाई हो चोट तो दुख औरों का समझे,
ReplyDeleteवो हँस रहे है और यहाँ जा पे बन आई,Recent post: रंग,
bahut achchi kavita hai.
ReplyDeleteकि एक ठोकर देती है
ReplyDeleteआगे संभलकर चलने का
हौसला
उम्दा !
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल गुरूवार (07-03-2013) के “कम्प्यूटर आज बीमार हो गया” (चर्चा मंच-1176) पर भी होगी!
सूचनार्थ.. सादर!
नए सब़क और पहली ठोकर के लिए
ReplyDeleteजिंदगी के साथ तेरा भी शुकराना...
बहुत अच्छी प्रस्तुति ..............पर मैं अरज करना चाहूँगा ...........
उन्हें नहीं पता है गम ऐ जुदाई का
आज वे चिलमन से हमें देखतें हैं.
खायेंगे चोट जब कभी अपने दिल पर
जानेंगे कैसे दिल टूटते हैं.
नए सब़क और पहली ठोकर के लिए
ReplyDeleteजिंदगी के साथ तेरा भी शुकराना...
बहुत अच्छी प्रस्तुति ..............पर मैं अरज करना चाहूँगा ...........
उन्हें नहीं पता है गम ऐ जुदाई का
आज वे चिलमन से हमें देखतें हैं.
खायेंगे चोट जब कभी अपने दिल पर
जानेंगे कैसे दिल टूटते हैं.
Bahut khoob
Deletesundar pratikatmk aur rupatmk prastuti
ReplyDeleteबहुत खूब आपके भावो का एक दम सटीक आकलन करती रचना
ReplyDeleteआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
तुम मुझ पर ऐतबार करो ।
पीड़ापूर्ण सुन्दरता सहित।
ReplyDeleteनए सब़क और पहली ठोकर के लिए
ReplyDeleteजिंदगी के साथ तेरा भी शुकराना....
अनायास इस गाने की याद आ गई .... मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया ...हर फ़िक्र को धुंए एँ उड़ाता चला गया ...