Wednesday, March 6, 2013

तेरा भी शुकराना....

तमाम रि‍श्‍ते-नाते
बेशकीमती हैं तुम्‍हारे लि‍ए
सि‍वा एक मेरे

* * *
फरेब से बारि‍श के
मुरझाते हैं नन्‍हें तरू
पर आ ही जाता है उन्‍हें भी
धरती के सीने से
जीवन शक्‍ति लेना

* * * *
कि एक ठोकर देती है
आगे संभलकर चलने का
हौसला

* * *
नए सब़क और पहली ठोकर के लि‍ए

जिंदगी के साथ तेरा भी शुकराना....

16 comments:

  1. जन्नत 2 के गाने के बोल याद आ गये इस रचना को पढकर

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  2. रूपकात्मक तत्वों से संसिक्त सशक्त रचना .प्रतीक अभिनव लिए हैं .सुन्दर मनोहर .

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  3. दिनांक 07/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  4. खाई हो चोट तो दुख औरों का समझे,
    वो हँस रहे है और यहाँ जा पे बन आई,
    Recent post: रंग,

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  5. कि एक ठोकर देती है
    आगे संभलकर चलने का
    हौसला

    उम्दा !

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  6. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल गुरूवार (07-03-2013) के “कम्प्यूटर आज बीमार हो गया” (चर्चा मंच-1176) पर भी होगी!
    सूचनार्थ.. सादर!

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  8. नए सब़क और पहली ठोकर के लि‍ए
    जिंदगी के साथ तेरा भी शुकराना...
    बहुत अच्छी प्रस्तुति ..............पर मैं अरज करना चाहूँगा ...........
    उन्हें नहीं पता है गम ऐ जुदाई का
    आज वे चिलमन से हमें देखतें हैं.
    खायेंगे चोट जब कभी अपने दिल पर
    जानेंगे कैसे दिल टूटते हैं.

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  9. नए सब़क और पहली ठोकर के लि‍ए
    जिंदगी के साथ तेरा भी शुकराना...
    बहुत अच्छी प्रस्तुति ..............पर मैं अरज करना चाहूँगा ...........
    उन्हें नहीं पता है गम ऐ जुदाई का
    आज वे चिलमन से हमें देखतें हैं.
    खायेंगे चोट जब कभी अपने दिल पर
    जानेंगे कैसे दिल टूटते हैं.

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  10. बहुत खूब आपके भावो का एक दम सटीक आकलन करती रचना
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    तुम मुझ पर ऐतबार करो ।

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  11. पीड़ापूर्ण सुन्‍दरता सहित।

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  12. नए सब़क और पहली ठोकर के लि‍ए
    जिंदगी के साथ तेरा भी शुकराना....

    अनायास इस गाने की याद आ गई .... मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया ...हर फ़िक्र को धुंए एँ उड़ाता चला गया ...

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