Monday, March 4, 2013

वो पीला सि‍तारा....



खगोलशास्‍त्र में मैं बि‍ल्‍कुल शून्‍य हूं.....हालांकि दि‍लचस्‍पी इतनी गहरी है कि‍(, जब भी मौका मि‍लता है..खुले आकाश में टि‍मटि‍माते तारों को अनवरत नि‍हारती रहती हूं.............ग्रह-उपग्रह, नजदीक के तारे, दूर टि‍मटि‍माते सि‍तारे....मन ही मन तारों को पहचानने की कोशि‍श... ये सप्‍तऋषि....ये झाड़ू तारा....ये रहा....ध्रुव तारा...........वैसे चाहती तो जान सकती थी इनके भी बारे में। मगर हूं अव्‍वल दर्जे की आलसी.........कोई बताएगा तो सुन लूंगी.....

ऐसे ही आज भी नजर पड़ी ज़रा नजदीक के उस सि‍तारे पर...जि‍सका रंग सफ़ेद न होकर औरों के बनि‍स्‍पत पीला है.........ये सि‍तारा बचपन से प्रिय है मुझे

याद आ गई वो बात मुझे.....शायद मेरी उत्‍कंठा शांत करने के लि‍ए दादी जी ने यह बात कही थी मुझसे...मेरे ये पूछने पर कि वो नज़दीक का तारा पीला क्‍यों है....बच्‍चों को बहलाने वाला ही जवाब मि‍ला था मुझे शायद.....

कि‍ उसे तारे का रंग इसलि‍ए पीला है, क्‍योंकि उसकी शादी होने वाली थी। बारात सजाकर बहुत दूर से एक चमकीला तारा आने वाला था...इसे ब्‍याह कर ले जाने के लि‍ए......पर न जाने क्‍या हुआ कि बारात आई ही नहीं और ये बेचारी शरीर पर हल्‍दी लगाए दूल्‍हे का इंतजार करती रही। इसने आज तक हल्‍दी नहीं उतारी अपने बदन से क्‍योंकि इसे वि‍श्‍वास है कि इसका मनमीत एक दि‍न जरूर आएगा।

उफ....ये इंतजार....

साथ ही मुझे याद आती है उन दि‍नों की बात जब पत्रकारि‍ता की कक्षाएं चल रहीं थी .....साथ में एक दीदी पढ़ती थी...खामोश...चुप-चुप सी। मुझसे दोस्‍ती हो गर्इ। जाने क्‍यों उदास लोगों से खूब बातें करने का मन होता है मेरा। ऐसे मैं कम बोलती हूं मगर कोई चुप्‍पा मि‍ल जाए तो मुखर हो जाती हूं। अपने इस व्‍यवहार पर कभी-कभी खुद ही आश्‍चर्य होता है मुझे।

हां, तो वो दीदी भी मुझसे बहुत घुल-मि‍ल गई। बहुत बाद में जाकर उन्‍होंने बताया कि उनकी शादी होने वाली थी। बारात दरवाजे पर लगने ही वाली थी........कि दहेज की रकम पर बात अटक गई। दरवाजे से बारात लौट गई और वह सोलह श्रृंगार किए बैठी रह गईं। तब से उदास हो गई है उनकी जिंदगी.....कि‍ कि‍सी पर यकीन नहीं होता अब। आज तक उन्‍होंने शादी नहीं की।

दीदी की कि‍स्‍मत और उस हल्‍दी लगे तारे की कि‍स्‍मत एक कैसे......क्‍या पता सच ही हो ये बात.....जो दादी ने बताई थी मुझे......


तस्‍वीर--साभार गूगल

13 comments:

  1. बहुत अच्छा लिखती हैं आप ...बधाई.

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  2. नकार दिए जाने का दर्द बहत गहरे घाव छोड़ जाता है मन पर ....इस पीर को समझना आसान नहीं ...बहुत भाव-पूर्ण रचना
    आपको अपने ब्लॉग पर आने का निमंत्रण दे रही हूँ ...नीचे पता है
    तुम्हारी आवाज़ .....

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  3. कुछ रिश्ते बहुत ही भावनात्मक होते हैं
    चाहे सजीव हो या निर्जीव
    वर मन कभी एक चीज पर अटकता है
    तो बहुत खटकता है
    और मौक़ा मिलते ही उभरता है

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  4. बहुत सुन्दर लिखा आपने रश्मि जी |


    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  5. वह पीला तारा कही शुक्र तो नहीं , मगर वह तो सुख , वैभव का प्रतीक है .
    आसमान को निहारने का शौक , तारों को ढूँढने की कोशिश , आप तो हमारे जैसी ही लगी . अच्छा लगा पढना !

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  6. दो वजहों के एक जैसे होने का कोई तो कारण होगा ही

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  7. achaaaa to ap likhti hi h
    sath me ache insan bhi

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  8. भाव-पूर्ण रचना आसमान को निहारने का शौक , तारों को ढूँढने की कोशिश ?

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  9. कितने भावपूर्ण होतें हैं वे क्षण ,कैसी होती है वोह मनोस्थिति ,जब बारात दरवाजे आ कर चली जाये.हर्दय को स्पर्श करती रचना

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  10. जी अब जाकर बात बनी , पढ़ना सुखकारी रहा . शुक्रिया आपका

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  11. संवेदनापूर्ण अभिव्‍यक्ति।

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