Thursday, May 23, 2024

गुलमोहर


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गांव में कतारबद्ध पेड़ों पर
छतरियों से फैले रहते थे सुर्ख फूल
गुलमोहर के

शहर के इस तंग मुहल्ले में
एक ही पेड़ था
जो ठीक मेरी खिड़की के नीचे खिलता था

उन्हें छू कर
अपने उखड़ने का दुख भूल जाती थी
यह वृक्ष नहीं, एक सेतु था

गांव से शहर की दूरी
अब थोड़ी और बढ़ गई है
कल गुलमोहर का यह पेड़ भी कट गया...

4 comments:

  1. पेड़ों का भी मन भर ही चुका होगा इंसानों से |

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  2. उन्हें छू कर
    अपने उखड़ने का दुख भूल जाती थी
    काफी कुछ भलाते और याद दिलाते है ये वृक्ष..
    बहुत ही सुंदर।

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