जब से यह फोटो क्लिक हुआ है, जाने क्यों लगता है इसके पीछे कोई कहानी छिपी है, जिसे महसूस तो कर पा रही हूं..मगर शब्द नहीं दे पा रही।
क्या मैं किसी बीती कहानी का हिस्सा हूं या कोई कहानी आगे लिखी जाएगी जिसका मुख्य पात्र बेंच और उस पर बैठी अकेली '' मैं '' हाेऊंगी। वैसै ऐसी सैकड़ों दोपहरें बीत चुकी है इस जिंदगी में। दोपहर का सन्नाटा, तेज धूप की थोड़ी सी छांंव में खुद को छुपाने की कोशिश।
क्या कुछ नहीं गुजरा है जीवन में।
हर किसी में एक कहानी नहीं कई कहानियां छुपी रहती है
ReplyDeleteबहुत सही
जीवन सीधी रेखा तो नहीं।
ReplyDeleteहो गए हैं हम तो कुछ तो होकर रहेगा।
आइयेगा नई रचना
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-3-21) को "नई गंगा बहाना चाहता हूँ" (चर्चा अंक- 4,001) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
आपकी महिमा आप ही जानें।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteVery Nice your all post. i love so many & more thoughts i read your post its very good post and images . thank you for sharing
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteज़रूर लिखी जा सकती है कहानी । लिखिए ।
ReplyDeleteहर जीवन अपनेआप में एक अनेक कहानी समेटे हुए है....
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
आप का ही तो एक रूप है यह भी - अब चिख डालिये कहानी भी.
ReplyDeleteजीवन चलने का नाम
ReplyDeleteअगले मोड़ पर कहानी से मिलने का इंतज़ार रहेगा.
ReplyDeleteनमस्ते.
एक अनगढ़ा अनुभव व अव्यक्त अनुभूति ....
ReplyDeleteकचोटती चंद साँसों को, इन शब्दों में, मैं अवश्य पढ़ सकता हूँ आदरणीया रश्मि जी।
बहुत सुंदर।
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