- जीवन से सारे संबंध धीरे-धीरे विलग क्यों होते जाते हैं ?
- अलग होने पर ही नए पत्ते आते हैं। शायद एक दिन मैं भी...
- तुम पत्ता नहीं हो मेरे लिए !
- तो क्या हूं ?
- थोड़ी जड़, थोड़ी मिट्टी, थोड़ा धूप, थोड़ा पानी
- कविता है ..
- न, बस आग्रह...छोड़ के मत जाना। सहन नहीं होगा।
................।
सुन्दर विचार
ReplyDeleteसुन्दर विचार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteओह झुरझुरी सी दौड़ गई रचना पढ़कर।
ReplyDeleteरोमांचक।
हृदय स्पर्शी।
गागर में सागर।
वाह!
ReplyDelete