जाते हुए साल को अलविदा कहने का इससे बेहतर तरीका कोई और नहीं हो सकता कि हम उन जगहों पर एक बार फिर जाएं, जहां इसलिए नहीं जा पाते क्योंकि हर छुट्टियों में कोई नई जगह घूमने का प्लान बन जाता है।
हम देश-विदेश तो घूम आते हैं मगर अपने शहर और गांवों के रमणीय दृश्यों को देखने से टालते रहते हैं। मेरा तो बचपन ही बीता है ओरमांझी गांव में, जहां से कर्क रेखा गुजरती है और एक जू भी है जहां सालों भर पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। वहीं अब जू के दूसरी ओर साल वन के जंगल के बीच ही मछली घर भी खुल गया है, जहां रंग-बिरंगी और कई प्रजाति की मछलियां मन मोहती हैं।
इस सबसे अलग, बस गांव से सटा ही है रूक्का डैम, जहां पिकनिक मनाने बचपन में कई बार गई हूं। इसी बांध के दूसरे सिरे पर है गेतलसूद बांध । नीले पानी का विस्तार और साल के पेड़ की छायाओं से घिरा डैम अपने विस्तार के कारण समुद्र सा विशाल लगता है। रूक्का के इस छोर से नीला पानी और दूसरी तरफ केवल साल के जंगल दिखते हैं।
तो इस बार सूरज के लुकाछिपी के बीच साल के सबसे छोटे दिन, यानी 22 दिसंबर को हम कुछ दोस्त निकल पड़े गेतलसूद डैम का नजारा लेने के लिए। रांची से गेतलसूद डैम की दूरी मुश्किल से 30-35 किलोमीटर की है। दोपहर भी निकले तो शाम लौट सकते हैं। गेतलसूद बचपन में भी गई हूं कई बार। यह बांध के दूसरे छोर पर है, जो अनगड़ा प्रखंड में आता है।अक्सर बारिश के दिनों में जब पानी खोला जाता है, तो लगता है बाढ़ आ जाएगी। छुटपन में जब इतना हरहराता पानी देखा था, तो डर गई थी।
हमलोग रांची से रिंग रोड होते हुए इरबा के पास निकले और ओरमांझी ब्लॉक चौक से सीधे सिकिदिरी रोड पर निकल गए। ब्लॉक के कुछ आगे ही एक रास्ता रूक्का के एक छोर की ओर जाता है।अक्सर ताजी मछली के ग्राहक इसी रास्ते से जाते हैं सुबह और मछुआरों से तुरंत पकड़ी मछलियां लेकर आते हैं। वैसे रूक्का जाने वाले घुमक्कड़ों के लिए और भी रास्ते हैं। चाहें तो इरबा बाजार टांड के बगल से जाइए या फिर रांची-हजारीबाग रोड से आने वाले विकास के पास दाहिनी ओर सीधे निकल जाएं।
मगर हमें तो आज उस रास्ते पर जाना था जो आजकल बाइकर्स गैंग का प्रिय और प्री वेडिंग शूट के लिए सबसे मुफीद जगह है। सिकिदिरी के पहले ही एक रास्ता दाहिनी ओर निकलता है, जो गेतलसूद की ओर ओर जाता है। लगभग पांच किलोमीटर लंबी-सीधी सड़क और दोनों तरफ साल के सीधे-ऊंचे पेडों से घिरा जंगल।
हम सुबह के ग्यारह बजे के आसपास वहां पहुंचे। ऊपर सूरज चमक रहा था मगर धरती पर धूप-छांव थी क्योंकेि पेड़ों ने सूर्य की किरनों का रास्ता रोक लिया था। सूखे पत्ते थे और हवाओं का शोर। सड़क पर भीड़ भी नहीं थी। जंगल के बीच हमने ढेर सारे फोटो खिंचवाएं।
सड़क की दूसरी ओर जब हम पहुंचे तो अचानक ढेरों तितलियां उड़ने लगी। हमें लगा कि वर्जित क्षेत्र में हमने पांव धर दिया। जाने इनका आरामगाह था या तितलियां धूप सेंकने आई थी। यह जरूर था कि इस तरफ हरे-भरे घास थे और पहले जिधर हम सड़क की बांयी ओर उतरे थे, उधर सूखे पत्ते थे। एक बांबी भी नजर आया। जाने किसका था, बस तस्वीर उतार ली।
कुछ देर जंगल का संगीत सुनकर हम पहुंचे डैम के पास। पुल के ठीक पहले बायीं ओर हरे-भरे खेतों में पीले सरसों खिले थे। कुछ किसान धान की मिसाई में लगे थे। दूर पानी में मछुआरे अपने नाव खेते खजर आएं। पुल के ठीक ऊपर पहुंचने पर देखा बांयी तरफ कुछ दूरी पर स्वर्णरेखा नदी बह रही है। नदी के ऊपर निकले पत्थरों पर कुछ चिड़ियां बैठी हैं और दूर एक-दो गाड़ी और बहुत सारे लोग दिखे। समझ आ गया कि इतनी सुबह लोग यहां पिकनिक मनाने वाले ही हो सकते हैं।
स्वर्णरेखा नदी पर स्थित इस डैम को 1971 में बनाया गया है। यहां मछली पालन भी किया जाता है। अक्सर छोटी डोंगी और नाव लेकर आपको मछुआरे दिख जाएंगे पानी में। कई बार इतने बड़े आकार की मछली पकड़ में आती है कि अखबारों में खबर भी छपती है कि 35 किलो की मछली पकड़ाई है। इस डैम को शहर का लाइफ लाइन भी कहा जाता है क्योंकि शहर में पानी की सप्लाई पहुंचाने में इस बांध की बड़ी भागेदारी है।
पिछली बार जब मैं गई थी तो नीचे पानी में पैर डालकर बहुत देर बैठी रही थी। मगर इस बार हमलोगों को आगे हुंडरू फॉल की ओर निकलना था, इसलिए लौटते हुए रूकने की बात कर हम आगे निकल गए। सूरज सर पर चढ़ आया था। पानी में किरणों का जादू देखना हो तो सुबह के वक्त देखिए या ढलती शाम को।
हमलोग हुंडरू फॉल से लौटते हुए फिर ठहरे बांध पर। सूरज ने आंख-मिचौली शुरू कर दी थी। मछुआरे अब भी नाव में थे। दूर कुहासे में लिपटे पहाड़ नजर आ रहे थे। पानी के बीच एक टापू जैसी जगह पर अभी-अभी एक नाव जाकर रूकी है। शायद वहां उन्होंने दिन भर की पकड़ी मछलियां जमा की होंगी, जिसे लेने के लिए गए हैं।
अथाह पानी का विस्तार...अचानक सूरज बादलों की ओट से निकल आया। चमचम करने लगी पानी में किरनें...जल्दी के कुछ क्लिक किए मैंने और दूर आकाश में उड़ते पंछियों में अपने कैमरे के लेंस में लाने की एक निरर्थक कोशिश की....।
ढलते सूरज की लालिमा के बीच एक और शाम बिताने का निमंत्रण दिया गेतलसूद डैम ने......मैंने स्वीकर किया।
गेतलसूद : साल के जंगल में |
गेतलसूद : डैम के किनारे |
गेतलसूद : शाम का इंतजार और लापता सूरज |
गेतलसूद : पानी का अथाह विस्तार |
गेतलसूद : क्षण भर को दिखा सूरज |
बहुत सुंदर शब्दांकन और शानदार चित्रांकन । पढ़ रहा हूँ तो यहाँ आने का मन हो चला है ...बधाई रमणीक लेखन हेतु।
ReplyDeleteबहुत दिलचस्प वर्णन। ऐसा लगा जैसे मैं भी साथ में घूम रही हूँ।����
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत खूब सचित्र वर्णन
ReplyDeletehttps://nahidkhan30880.blogspot.com/2020/05/add-caption-gaeltasud-dam-is-beautiful.html
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