रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं...
कोई हो न हो ... मान को ये आभास रहे ऊपर वाले का साथ रहे बाँह थाम लेता है कोई ...सुंदर रचना ...
बेहतरीनसादर
आपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 08 सितम्बर 2018 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह लाजवाब भाव.रंगसाज़
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कोई हो न हो ... मान को ये आभास रहे ऊपर वाले का साथ रहे बाँह थाम लेता है कोई ...
ReplyDeleteसुंदर रचना ...
बेहतरीन
ReplyDeleteसादर
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ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteलाजवाब भाव.
रंगसाज़