चाँदनी तब देखा था जब मन में हसरतें करवट लेनी शुरू होती हैं। स्कूल में ख़ूब बात करते चाँदनी और श्रीदेवी की। इस फ़िल्म ने एक हसरत जगायी कि कोई ऐसा हो जो हमारी भी इतनी तस्वीरें अपने दीवार पर लगाए।
तब दौर ही ऐसा था कि ख़ुद के लिए श्रीदेवी का सम्बोधन सुनना मन को गुदगुदा देता था। एक बार स्कर्ट पहनकर किसी मेले में गयी थी.....पीछे से किसी लड़के का कॉमेंट आया.....'एकदम श्रीदेवी'। तब से सहेलियाँ और चिढ़ाने लगी।
बाद में कई फ़िल्में देखी और श्रीदेवी मन में उतरती रही। उनकी सुंदरता की क़ायल रही हमेशा से।सदमा से मॉम तक....बेहतरीन लगीं।
अब भी मन को सुकून देना होता है तो चाँदनी का गाना-'तेरे-मेरे होंठों पे, मीठे-मीठे गीत मितवा' यू ट्यूब पर सुनते हुए सुनती हूँ। इतनी बार इस गाने को देखा कि मेरे बेटे ने कहा एक दिन- 'आपको इतना ही पसंद है तो आप भी क्यों नहीं ऐसी शिफ़ोन की साड़ी में अपनी फ़ोटो खिचवाते हो' ।
वो समझता नहीं कि यह गाना या फ़िल्म हमें उस दौर की याद दिलाता है जब सुकून और सपने के अलावा कुछ और नहीं था ज़िंदगी में।
अभी वक़्त नहीं था तुम्हारे जाने का ...बहुत याद आओगी।
3 comments:
श्रद्धांजलि।
यहाँ से जाने की कोई उम्र और वक्त नहीं होता है....
रास्ते कहां खत्म होते है, जिंदगी के सफर में;
हमारी मंजिल तो वहीं है, जहां सांसें थम जाएं।
भावभीनी श्रद्धांजलि.🙏🙏
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन एक लम्हे में चाँदनी से जुदाई : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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