Friday, February 23, 2018

एक बार की विदाई....


साँझ के झुटपुटे में
छाये की तरह
फैलती है उम्मीद
पाँव का महावर 
ईर्ष्यादग्ध है अब तक
उसके अधर आलते से
योजन भर की दूरी
देह तय नहीं
कर पाती कभी पल में
आमंत्रण पर
आत्मा क्षणांश में
लिपटती है आकर
आज भी रास्ता देखा
प्रतिदिन की तरह
दिन के अवसान में
सूरज ढले-निकले
एक बार की विदाई
सहस्र इंतज़ार की शुरुआत है ।

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना आज के "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 25 फरवरी 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन वीनस गर्ल आज भी जीवित है दिलों में : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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