दुनिया के शोर से
ऊबा हुआ मन
एकांत तलाशता है
जब उस एकांत का
शोर भी
बहुत तीखा हो जाता है
तो आवाज़ लगाता है
उसे
जिससे उम्मीद हो कि
इन सब से परे ले जाएगा
मगर
दुनिया अपने मन के जैसी
नहीं होती
आपको दुनिया के साथ- साथ
ख़ुद से भी लड़ना होता है
क्योंकि
ज़रूरत के वक़्त आप
कभी किसी को पास नहीं पाएँगे ।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 32वीं पुण्यतिथि - संजीव कुमार - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर...👌
ReplyDelete