Thursday, September 7, 2017

ओ साथी


ओ साथी
तेरे इंतज़ार में गिन रहे
समुद्र की लहरें
जाने कितने समय से
समेट लो अपने डैने
मत भरो उड़ान
लौट आओ वापस
समुद्र वाली काली चट्टान पर
जहाँ समुन्दर का
निरंतर प्रहार भी
पथ से विचलित न कर पाया
मैं थमा हूँ अब भी
मेरी एकाग्रता और इंतज़ार की
मत लो और परीक्षा
कि आना ही होगा एक दिन और
ये न हो कि ना मिलूँ तुमको, फिर कभी।

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