रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं...
Friday, August 25, 2017
नीलगगन की थाली में
नीलगगन की थाली में मक्खन जैसे बादल । सूरज घेवर के टुकड़े सा नदियां जैसे छागल । बर्फीली चादर तान सुमेरु मस्त धूप में सोए । श्योक नदी के तट किसने रेत के टिब्बे बोए । मरीचिका सी लेह भूमि मन को कर गई पागल ।
आपकी रचना बहुत ही सराहनीय है ,शुभकामनायें ,आभार
ReplyDelete"एकलव्य"
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन महिला असामनता दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह ... मीठी मीठी सी हो गयी प्राकृति आज ... सुन्दर उपमाएं ...
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