Friday, August 25, 2017

नीलगगन की थाली में



नीलगगन की थाली में
मक्खन जैसे बादल ।
सूरज घेवर के टुकड़े सा 
नदियां जैसे छागल ।
बर्फीली चादर तान सुमेरु 
मस्त धूप में सोए ।
श्योक नदी के तट किसने
रेत के टिब्बे बोए ।
मरीचिका सी लेह भूमि
मन को कर गई पागल ।

4 comments:

  1. आपकी रचना बहुत ही सराहनीय है ,शुभकामनायें ,आभार
    "एकलव्य"

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन महिला असामनता दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  3. वाह ... मीठी मीठी सी हो गयी प्राकृति आज ... सुन्दर उपमाएं ...

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