मेरा मन
कभ्ाी-कभ्ाी बन जाता है हाईकोर्ट
आसपास की समस्या
दिल के अलग-अलग खानों में
रखा हुआ दर्द
चीत्कार उठता है
तो
स्वत: संज्ञान लेता है मन
आदेश देता है दिमाग को
कि
दिल के उस कोने में
अतिक्रमण है
त्वरित कार्रवाई कर
स्थिति नियंत्रण में लाई जाए
यदि
होता रहे ऐसा ही दुरूपयोग
तो क्यों न दिल का
वह खाना बंद करा दिए जाए।
मेरा मन
कभ्ाी-कभ्ाी
सुप्रीम कोर्ट में तब्दील हो जाता है
किसी मसले पर
पुरजोर बहस
चलाता है
दिल और दिमाग
झनझना जाए
इतनी कठोर बातें भी कहता है
महीनों तक चलती है बहस
फिर
होती है सुनवाई
दिल, दिमाग, आत्मा और
जरूरतेंं
सभी पक्ष रखते हैैं अपना
कोर्ट सुनता है हर बात
मगर
फैसला सुरक्षित रख लेता है
आशाओं-निराशाओं को अधर में रख
सारी कार्रवाई से आए फैसले
को सीलबंद कर
लंबी छुट्टी में चला जाता है
कोर्ट रूपी मन
फैसले की आस में
बीमार दिल
अखबार की हेडलाइंस की तरह
अपनी
धड़कनें पढ़ता है
और सारी
न्यायिक प्रक्रिया को खूब गाली बकता है
इस देस में
कछुए की चाल से
होता है कोई भी फैसला
और मेरा मन
इस देस का सच्च्ाा नागरिक है
आदेश खूब देता है, सुर्खियां बटोरता है
मगर
कितना हो रहा अनुपालन
यह कहां देख पाता है
जो था, जैसा था, सब वैसा ही रह जाता है ।
बहुत ख़ूब ... मन की पहुँच कहाँ कहाँ नहि है ... लम्बी सोच ...
ReplyDeleteWaah ji lagta hai Advovate Adarsh shrma ji se kanooni danv pench seekh rahe hai aap .
ReplyDeleteSunder samsamayik rachna .
किसी ने कहा है जो आजतक आप करते रहे हैं यदि वही करते रहे तो तो भविष्य में वही पाएंगे जो आजतक पाते रहे हैं. जो जैसा है वैसा ही रह जाता है अर्थात हम वही राग ही अलापते रहते हैं.
ReplyDeleteसच्चाई को बयाँ करती रचना..
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 02 जून 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजहां न जाये रवि, वहां जाए कवि! बहुत सामयिक और प्रासंगिक ( कल्पना नहीं !) सत्य।
ReplyDeleteफैसले लेने के लिए दक्षता की दरक़ार होती है। यथार्थपरक रचना।
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