मैं मृग्ाी
कस्तूरी सी
देहगंध तुम्हारी
ढूंढती फिरती
दसों दिशाएं
मिलते हो
जब ख्वाबों में
होते अलिंगनबद्ध
फूटती है सुगंध
अपने ही
तन से
विचरती हूं
भावनाओं के वन मेंं
अब तुम
मोहित से हो भंवरे
कलियां चटखती हैं
दिवस जैसे मधुमास
मैं मृगनयनी
तुम कस्तूरी
जीवन में तुमसे ही
है सारा सुवास
तस्वीर....इस जंगली फूल की खुश्बू बहुत ही मादक होती है।
सुन्दर पंक्तियाँ ,आभार।
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सुकमा नक्सली हमला और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteप्रभावी रचना ।
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