Monday, September 26, 2016

पटरि‍यों सी जिंदगी



वहां
दूर पहाड़ के नीचे
ठीक
बादलों के पीछे
एक हरि‍याला गांव है
जहां
मिट्टी के घर के
आंगन में
तुलसी का एक बि‍रवा
लगाना चाहती हूं
संग तुम्‍हारे
घर बसाना चाहती हूं
और तुम
जैसे
युगों से
मेरा हाथ पकड़
चल रहे हो
समानांतर
रेल की पटरी की तरह
क्‍या
हरे पेड़ और
मिट्टी की खुश्‍बू
से ज्‍यादा
रेलगाड़ी की पटरि‍यों सी
जिंदगी
अच्‍छी होती हैं......।

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