Tuesday, August 23, 2016

कपास सी छुअन


सहलाया
अंतस के खुरदुरेपन को
पांवों पर धर दी अपनी गर्म हथेली
कि‍ सि‍हरन
पूछने लगी अपनी ही प्रज्ञा से
तन सि‍हराऊं कि‍ मन
दोनाें ही रहि‍त है
कपास सी कोमल छुअन से

एक घूंट भरी थी
बची हुई केसर की तली से
धड़का था हृदय
स्‍वाद चखने से  ही नहीं आता
संवेदनाएं
सम्‍मोहि‍त भी करती हैं
कि‍सी की चोट का दर्द दूजा सह लेता है

हथेलि‍यों की कि‍स्‍मत में
जुड़ना न भी लि‍खा हो
दि‍शाएं तय कर देती है
एक सी राह के ध्‍ूाल में लि‍पटना
कांधाें पर ही बोझ उठाया नहीं जाता हरदम
कोई मुस्‍कान देकर जग जीत लेता है
साथ रहता है जैसे एकात्‍मा। 

7 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25 - 08 - 2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2445 {आंतकवाद कट्टरता का मुरब्बा है } में दिया जाएगा |
    धन्यवाद

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  2. एक मुस्कान के बदले जीवन अकसर खो जाता है कभी कभी ....

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  3. अपने से प्रश्न पूछना भी एक गहन साधना है।

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  4. सुन्दर प्रस्तुति

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  5. पहली बार आपकी कविताएं पढ़ीं, उम्दा...

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  6. सुन्दर प्रस्तुति

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