सहलाया
अंतस के खुरदुरेपन को
पांवों पर धर दी अपनी गर्म हथेली
कि सिहरन
पूछने लगी अपनी ही प्रज्ञा से
तन सिहराऊं कि मन
दोनाें ही रहित है
कपास सी कोमल छुअन से
एक घूंट भरी थी
बची हुई केसर की तली से
धड़का था हृदय
स्वाद चखने से ही नहीं आता
संवेदनाएं
सम्मोहित भी करती हैं
किसी की चोट का दर्द दूजा सह लेता है
हथेलियों की किस्मत में
जुड़ना न भी लिखा हो
दिशाएं तय कर देती है
एक सी राह के ध्ूाल में लिपटना
कांधाें पर ही बोझ उठाया नहीं जाता हरदम
कोई मुस्कान देकर जग जीत लेता है
साथ रहता है जैसे एकात्मा।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25 - 08 - 2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2445 {आंतकवाद कट्टरता का मुरब्बा है } में दिया जाएगा |
ReplyDeleteधन्यवाद
एक मुस्कान के बदले जीवन अकसर खो जाता है कभी कभी ....
ReplyDeleteअपने से प्रश्न पूछना भी एक गहन साधना है।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteपहली बार आपकी कविताएं पढ़ीं, उम्दा...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
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