Sunday, December 7, 2014

चोरी हो गई धूप.....



नर्म सीली सी दूब
जाड़े की दुपहरि‍या
और एक टुकड़ा धूप

बदन सेंकती 
धूप में नहाती, कभी
घूंट-घूंट पीती थी धूप

आंखों में बंद सूरज
मीठी सी झपकी
आकाश तले सहलाती धूप

क्‍या देखा कि‍सी ने
गुम हुआ सूरज मेरा
या चोरी हो गई धूप।

6 comments:

  1. बहुत खूब .. धूप तो वहीं है ... उठाने वाले आज कम हो गए हैं ...

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  2. खूबसूरत सी धूप अच्छी लगी ।

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  3. सहरा की रेत में सराब सी खामोख्याली,
    जम गई बर्फ सी ,वो मन की लहरी है !!
    सुन्दर ग़ज़ल

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