Thursday, December 18, 2014

मेरे शहर का मि‍ज़ाज तेरे जैसा है....


आज मेरे शहर का मि‍ज़ाज तेरे जैसा है.....धुंध में लि‍पटा, कोहरे में डूबा...

सूरज कैद था बादलों की सफ़ेद चादर में। शाम सर्दी ऐसी उतरी जैसे हू...हा...कर कोई कि‍सी को डराए, जो मौसम से बेपरवाह बैठा हो कि‍सी झील के कि‍नारे..पानी में अपने अक्‍स देखता, आसमान की छत से कोई झांकता हो चेहरा जैसे....चुपचाप..छुप-छुप के...

आज मेरे शहर का मि‍ज़ाज तेरे जैसा है.... जकड़ा हुआ, कि‍ सब भूले कोई

और तुम भूल जाओ उसे...सर्पीली सड़क पर धुंध में इंतजार और हाथों में मौसमी फूलों का गुच्‍छा लि‍ए कोई उदास शीत भरी बेंच पर अपने ही घुटने में मुंह छुपाए बैठा रहे और कोई लि‍हाफ के बाहर पैर न धरे ....कि‍ सर्दी मौसम को ही नहीं रि‍श्‍ते को भी लगती है...

आज मेरे शहर का मि‍ज़ाज तेरे जैसा है.... सब कुछ वैसा ही है..पर कुहासे में लि‍पटा..धुंधलाया ..

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना शनिवार 20 दिसंबर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. बहुत सुन्दर... दर्द के एहसास का वर्णन

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  3. बहुत सुन्दर..सच में आजकल सर्दी रिश्तीं को भी लग गयी है..

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  4. बहुत सुंदर पद्यात्मक गद्य .....

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  5. बहुत सुंदर पद्यात्मक गद्य .....

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  6. बहुत ही सुन्दर गद्य काव्य या कहूँ तो कविता। दिल को छू जाती है जैसे ओस की बूँदें। स्वयं शून्य

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  8. दिल को छु के गुज़रते हुए एहसास ...

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